कृषि कानूनों की वापसी का कारण :- तीनो कृषि कानून आखिर वापस हो गए आप लोगों ने सुना होगा सभी अपनी अपनी राय दे रहे हैं अलग अलग तरह की सोंच समझ रखने वाले अपनी सद्बुद्धि के अनुसार बातें बतायें, कुछ हम लोगों ने भी खंघालने की कोशिश करी है अपनी तरफ से की आखिर क्यों ये तीनों कानून वापस लिए गए क्या इसमें कोई चुनावी स्टंट है क्या इन कानूनों को वापस ले कर कोई राजनितिक तरीके से जीत हांसिल करना है क्या प्रभाव पड़ता उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाओं पर अगर ये तीन कृषि कानून वापस नहीं लिया जाता तो आइये जानते हैं,
- सबसे बड़ी कारण है पच्छिमी उत्तरप्रदेश जहाँ पर अभी तीन महीने बाद चुनाव है BJP का अपना फीडबैक आ रहा था की वहां जमीन पर हालात ठीक नहीं हैं, और यह एक बड़ा कारण रहा है जिसके चलते BJP ने फैसला किया है वहां पर हालत बदल रहे हैं ये बीजेपी को सन्देश मिला था और वहाँ अभी तक जो तीन चुनाव 2014, 2017, और 2019 में हुए थे उनमे बीजेपी को बड़ा समर्थन मिला था लेकिन तब धीरे धीरे कर के हालत में परिवर्तन आ रही थीं तब आपको पता होगा की जाट नेता अजीत सिंह को की कद्दावर जाट नेता हैं वह भी अपना चुनाव हार गए थे, अभी क्या हुआ था किसान आंदोलन को ले कर सरकार ने जो सख्ती करी थी जिसको ले कर पूरी जाट समुदाय नाराज बताये जा रहे थे और साथ ही जो तमाम नेताओं के बयान जिस तरह से आये इसमें किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की गयी उससे भी जाट नाराज थे राकेश टिकैत को क़द्दावर जाट नेता हैं वो आन्दोलन का प्रमुख चेहरा बन गए वैसे तो इन कानूनों का पश्चमी उत्तरप्रदेश में असर नहीं था लेकिन वहां पर गन्ने का एक बड़ा मुद्दा रहता है लेकिन योगी सरकार ने अपनी तरफ से गन्ने का समर्थन मूल्य भी बढ़ाया था| लेकिन किसान इस बात से ज्यादा आहत थे की किस तरह से उनका उनकी समुदाय का अपमान किया गया है| जब राकेश टिकैत की महा पंचायत हुई हैं तो विपक्छ ने भी उनको समर्थन दिया है और उसमे भरी जान सैलाब उमड़ा था और आप जानते हैं की जो दंगे हुए थे वहा पर पच्छमी उत्तरप्रदेश में उसमे जाट मुस्लमान एकता टूटी थी जिसका फायदा बीजेपी को मिला था लेकिन किसान आंदोलन की वजह से यह एकता फिर से बनने लगी थी और साथ ही बीजेपी को ये भी डर था की कही चुनाव प्रचार के लिए उनके नेता जाते हैं तो कही हरियाणा जैसा हाल न हो जिस प्रकार से हरियाणा में लगातार विरोध हो रहे थे, PM मोदी भी अगले सप्ताह 25 नवंबर को ग्रेटर नॉएडा जा रहे हैं ऐरपोड की आधारशिला रखने के लिए और तब बीजेपी को डर था कही उनका भी विरोध न कर दिया जाये और जिस तरह से लखिमपुर हिंसा हुई है उसमे केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे को जिस तरह से भूमिका रही उसको ले कर के भी bjp को नुकसान की आशंका थी पश्चिमी उत्तरप्रदेश में,
- अब जो दूसरी कारण है जो बड़ी कारण है वह है कैप्टन अमरिंदर सिंह का फैक्टर कैप्टन ने कांग्रेस छोड़ने के बाद जो पहला इंटरव्यू दिया था NDTV को उसमे कहा था की वो कांग्रेस छोड़ रहे हैं लेकिन बीजेपी में नही जा रहे हैं BJP से गठबंधन करेंगे और कृषि कानूनों पर कुछ बड़ा करने की ज़रूरत है तभी संकेत मिल गया था की सरकार शायद कुछ बड़ा करने जा रही है और तभी उन्होंने BJP से गठबंधन की बात भी साफ तौर पर कही थी और बिल्कुल वैसा ही हुआ है और तभी कृषि कानूनों पर सरकार में विचार भी शुरू हुआ फिर कहा गया कि कुछ कानूनों को रोक लिया जाये लेकिन बाद में फैसला हुआ कि सभी कानूनों को वापस ले लिया जाए। आप जानते हैं कि पंजाब में BJP के पास न तो खोने के लिए कुछ हैं और ना ही पाने के लिए है इस लिए BJP को लगता है कि कैप्टन अगर आगे आते हैं तो उनके पिछे पीछे BJP भी कुछ हद तक फायदा उठा सकती है पार्टी को लगता है कृषि कानून के वापसी का श्रेय अगर कैप्टन को दिया जाए तो उससे कुछ कैप्टन के नई पार्टी को फायदा मिल सकता ये BJP का अपना आकलन है। अकाली दल जो BJP की सबसे पुरानी सहयोगी रही है ओ इन्ही कानूनों के मुद्दों पर गठबंधन छोड़ कर गयी थी, अभी नही तो चुनाव के बाद उसे वापस आने में दिक्कत नही होगी ये भी BJP का आकलन है और साथ ही सिक्खों के लिए प्रधानमंत्री लगातार बयान करते रहे हैं जो सिक्ख गुरु हैं उनके प्रकास पर्व के लिये PM ने काफी काम किया है मोदी सरकार की तरफ से कई घोषणाएं की गई हैं और साथ ही BJP नेता ये भी कहते हैं कि PM ने जमीन पर भी काफी काम किया है पंजाब में और सिक्ख समुदाय के साथ उनके काफी अच्छे संबंध हैं और इसी लिए गुरुनानक देव के प्रकाश पर्व पर ही कृषि कानूनों के वापसी का फैसला किया गया।
- तीसरा प्रमुख कारण है हरियाणा का जहां पर लगातार उग्र प्रदर्शन देखने को मिल रहा है पिछले एक साल में वहां पर जैसे युद्ध का मैदान हरियाणा को बना दिया गया है जहाँ पर की पुलिस और किसानों के बीच मेँ BJP नेताओ के बीच मे लगातार टकराओ हो रहा है राज्य भर में BJP नेताओं की शामत है कही उनके कपड़े फाडे जा रहे हैं कही उनको सभाएं करने से रोक जा रहा है और इस लिये राजनीतिक कार्यक्रम करना BJP के लिए मुश्किल होता जा रहा है। दुष्यन्त चौटाला जो कि ताकतवर जाट नेता हैं जो सरकार में शामिल हैं उप मुख्यमंत्री हैं उनका भी लगातार दबाव था कि आपको कृषि कानूनों पर कुछ फैसला करना पड़ेगा ताकि जो जाट नाराज हैं उनको भी साथ लिया जा सके और सड़कें जिस तरह से बंद हैं दिल्ली बॉर्डर पर उससे भी न सिर्फ दिल्ली के बल्कि हरियाणा के लोग भी परेशान है उनके रोजगार छीन रहे हैं यह भी एक बड़ा कारण हैं जिसके चलते कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।
- चौथा कारण है जो है प्रधानमंत्री की अपनी छवि को धक्का BJP लगातार यह कोशिश कर रही हैं पहले कहा गया कि किसानों की आमदनी को दोगुना किया जाएगा उसके लिए कई कदम उठाए गए लेकिन किसान आंदोलन में PM पर सीधे हमले हुए हैं PM की किसान विरोधी छवि पिछले एक साल में की गई जो BJP को जाहिर सी बात है रास नही आ रही है प्रधानमंत्री के पुतले जलाये गए उनके खिलाफ नारे लगाए गए और यह BJP को बहुत ही बुरा लगा है संघ और BJP के भीतर भी आवाजें उठी संघ के पुराने महासचिव हैं उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा की किसान आंदोलन को लम्बा नहीं चलने देना चाहिए बीजेपी के वरुण गांघी हों चौधरी वीरेंद्र सिंह हों ये तमाम नेता किसान आंदोलन के समर्थन में आवाज उठाते रहे अब इस आंदोलन में महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी जुड़ने लगे जो सरकार के लिए दिक्कत कर रहे थे और वैसे भी जो कानून वापस किये हैं ये भी PM की छवि के लिए धक्का है क्यों की इस से पहले भूमि अधिग्रहण कानून भी सरकार वापस ले चुकी है और जिस तरह से CA को ले कर के अभी तक नियम नहीं बनाये गए ये भी PM मोदी की छवि के लिए धक्का है, PM मोदी जी की छवि इस तरह से बनाई गयी थी की वह कठोर फैशला करते हैं, धारा 370 का मामला हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक हो चाहे नोट बंदी हो लेकिन जिस तरह से किसान कानून वापस हुआ यह भी एक तरह से PM मोदी की छवि को धक्का माना जा रहा है|
- एक और जो कारण है पांचवा कारण वह है राष्ट्रीय सुरक्षा का क्यों की ये आंदोलन आगे चल कर बड़ी समस्या बन सकता था ये बीजेपी नेताओ का अपना आकलन है उनका ये कहना है की इसमें देश विरोधी और अलगाओवादी ताकते फायदा उठाने की फ़िराक में थी, 26 जनवरी पर लाल किले पर जिस तरह की हिंसा हुई ये इस तरह का एक उदहारण है की कैसे अलगाव वादी तकते इसका फायदा उठाना चाहती थी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कांग्रेस छोड़ने के बाद गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात किये थे और राष्ट्रिय सुरक्षा पर किस तरह का असर पड़ सकता है इस आंदोलन की वजह से उसे ले कर एक प्रसेन्टेशन भी गृह मंत्री को दिया था|
- सबसे आखिर में जो कारण है गतिरोध न टूटना क्यों की लगातार बातचित हो रही थी 20 बार से ज्यादा बात किसानो से सरकार की हुई लेकिन कोई समझौता नहीं हो पाया मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पंहुचा सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को ले कर के समिति भी बनाई लेकिन इसके बावजूद गतिरोध जो था वो बरक़रार रहा और कानून मुल्तवी करने का प्रस्ताव भी सरकार ने दिया था 2 साल तक लेकिन किसानो ने उसे ठुकरा दिया उसके बाद सरकार के पास कोई चारा नहीं बचा था सिवाय इसके की इसको वापस किया जाये|
हालाँकि बीजेपी ये कहती है की ये गलत है की चुनाव के डर के कारण कानून वापस लिए गए उनका यह कहना है की इस कानून के बनने के बाद से जितने चुनाव हुए उनमे बीजेपी को कामयाबी मिली है ये उनका दवा है की असम में फिर से पार्टी ने सरकार बनाई पश्चिम बंगाल में उनकी सीटें 3 से बढ़ कर 77 हो गयी पाण्डुचेरी की अगर बात करें तो वहां पर बीजेपी ने गठबंधन की सरकार बनाई है और साथ ही ये भी दावा करते है की इसके बाद से जितने भी उप चुनाव, निगम चुनाव,जिला परिसद के चुनाव इन तमाम में बीजेपी को कामयाबी हांसिल हुई है तो बीजेपी कहती है की चुनाव के दर से कानून वापस लेने की बात सरा-सर गलत है, यह कुल मिलकर विश्लेषण है की क्यों कृषि कानून को वापस लिया गया|