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ब्लैक होल की रहस्य

ब्लैक होल की रहस्य

ब्लैक होल की रहस्य – ‘ब्लैक होल’ अंतरिक्ष में वह जगह होती है जहांं फिजिक्स के सारे नियम बेअसर हो जाते हैं। यह बेहद शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण वाला स्थान है जिसके खिचाव से कोई नहीं बच सकता। यहां तक कि प्रकाश भी यहां प्रवेश करने के बाद बाहर नहीं निकल पाता। ‘ब्लैक होल’ अपने आस-पास की सारी वस्तुओं को निगल लेता है।

ब्लैक होल की रहस्य
ब्लैक होल की रहस्य

ब्लैक होल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए वैज्ञानिक दिन-रात काम कर रहे हैं। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार ब्लैक होल ऐसे पिंड होते हैं, जो प्रकाश के साथ-साथ ब्रह्मांड में मौजूद सभी चीजों को अपने अंदर खींचकर नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। खगोलशास्त्रियों ने अंतरिक्ष में ऐसी कई जगहें देखी हैं, जहां कोई तारा किसी ब्लैक होल में समाता जा रहा है। ब्लैक होल में विलय होने के बाद उस तारे का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। अब यह सवाल उठना लाजमी है कि अगर धरती ब्लैक होल में समा जाए तो क्या होगा? कौन सा ब्लैक होल हमारे ग्रह के सबसे नजदीक है? इसकी दूरी कितनी है और यह कब तक धरती को निगल सकता है?

‘ब्लैक होल्स’ को ब्रह्मांड का सबसे बड़ा विलेन माना जाता है। एस्ट्रोनॉमर्स का कहना है कि ‘ब्लैक होल्स’ बहुत खतरनाक हैं और सूरज से पांच से लेकर 100 गुना तक ज्यादा बड़े होते हैं। इतना ही नहीं, केवल हमारी आकाशगंगा ‘मिल्की वे’ में ही इनकी संख्या 100 मिलियन से ज्यादा है। 

सबसे पहले जानते हैं कि ब्लैक होल क्या होते हैं? वे बड़े से बड़े तारे को भी कैसे निगल और नष्ट कर देते हैं? दरअसल, ब्लैक होल की सारी शक्ति उसके छोटे आकार में निहित होती है। यह अपने आकार में काफी वजनी होता है। इससे इसका गुरुत्वाकर्षण बहुत शक्तिशाली हो जाता है। इस शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ब्लैक होल अपने आसपास आने वाली हर चीज को खींच कर निगल जाते हैं। इसका गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक है कि कोई तारा प्रकाश की गति से इसके पास से भी गुजर जाए तो यह उसे अपने अंदर खींच लेता है। यह भी जरूरी नहीं है कि ब्लैक होल सिर्फ ब्लैक ही हों। क्वासर अत्यंत चमकदार ब्लैक होल होते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर पृथ्वी ब्लैक होल में गिरती है तो तीन घटनाएं हो सकती हैं। सबसे पहले इसके गुरुत्वाकर्षण के कारण हमारा शरीर लम्बा होने लगेगा और खिंचाव महसूस होगा। बीच में रहने से पैर और सिर खिंचते रहेंगे। साथ ही हाथों के केंद्र से बाहर होने के कारण अलग-अलग दिशाओं में लंबी होने लगेंगी। इससे हमारा पूरा शरीर स्पेगेटी जैसा हो जाएगा। वैज्ञानिकों ने इसे स्पेगेटीफिकेशन प्रक्रिया का नाम दिया है। दूसरे, ब्लैक होल में बहुत अधिक विकिरण होता है। इससे इसमें गिरते ही हमारा शरीर भुन जाएगा। तीसरा, ब्लैक होल में गिरने वाली किसी वस्तु की एक होलोग्राफिक छवि बनाई जानी चाहिए और यह अपने मूल रूप में बरकरार रहनी चाहिए।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने पहली बार 1916 में अपने सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के साथ ब्लैक होल के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी । “Black Hole” शब्द का इस्तेमाल कई साल बाद 1967 में अमेरिकी खगोलशास्त्री जॉन व्हीलर द्वारा किया गया था। दशकों के बाद भी ब्लैक होल को केवल सैद्धांतिक वस्तुओं के रूप में जाना जाता रहा है।

आइंस्टीन ने ब्लैक होल के अस्तित्व की खोज नहीं की थी हालांकि, उनका सापेक्षता का सिद्धांत उनके होने की भविष्यवाणी करता है। कार्ल श्वार्ज़चाइल्ड आइंस्टीन के क्रांतिकारी समीकरणों का उपयोग करने वाले और यह दिखाने वाले पहले व्यक्ति थे कि Black Hole वास्तव में मौजूद हो सकते हैं।

ब्लैक होल के पास किसी भी तारे का हिस्सा तेजी से अंदर की ओर खिंचता है। ब्लैक होल से तारे के दूरस्थ भाग पर गुरुत्वाकर्षण कमजोर रहता है। इस अंतर को ज्वारीय बल कहते हैं। इससे तारा टूटता है। ब्लैक होल में गिरने पर स्पघेटी बनाते समय भी ऐसा ही प्रभाव दिखाई देता है। खगोलविदों ने ऐसी घटनाओं को अन्य आकाशगंगाओं में घटित होते हुए देखा है। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक ज्वारीय विक्षोभ कहते हैं। इसमें ब्लैक होल के बेहद करीब पहुंचकर तारा टूट गया

हालांकि, कोई भी ‘ब्लैक होल’ हमारी धरती के इतने पास नहीं है कि हमें कोई खतरा हो परंतु खगोलविदों ने ऐसे तारकीय ‘ब्लैक होल’ की खोज की है, जो पृथ्वी के सबसे निकट है। यह अब तक सबसे पास माने जाने वाले ‘ब्लैक होल’ की तुलना में पृथ्वी से तीन गुना ज्यादा निकट है। पृथ्वी से 1,500 प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित यह ‘ब्लैक होल’ सूर्य से 10 गुना ज्यादा भारी है।

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