रात के वक़्त बार-बार पेशाब आना इन बिमारियों की ओर करती हैं इशारा – रात में बार-बार पेशाब के लिए नींद से उठना एक मेडिकल कंडीशन है जिसे नोक्टूरिया (Nocturia) कहा जाता है। सोने के समय, आपका शरीर कम मूत्र का उत्पादन करता है जो अधिक केंद्रित होता है। इसका मतलब है कि ज्यादातर लोगों को पेशाब करने के लिए रात में जागने की जरूरत नहीं होती है और वे 6 से 8 घंटे तक बिना रुके सो सकते हैं। लेकिन यदि आपको दो बार से ज्यादा बार पेशाब के लिए रात में उठना पड़ता है, तो आपको सतर्क होने की जरूरत है।
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पेशाब आपके शरीर का गंदा लिक्विड होता है, जो मुख्य रूप से पानी, नमक, इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे पोटेशियम, फास्फोरस, यूरिया, यूरिक एसिड रसायनों से बना होता है। आपके गुर्दे इसे तब बनाते हैं जब वे आपके रक्त से विषाक्त पदार्थों और अन्य खराब चीजों को छानते हैं। समय-समय पर इसका आपके शरीर से बाहर निकला सेहत के लिए जरूरी होता है। लेकिन कुछ लोगों को बार-बार पेशाब लगने की समस्या होती है मुख्य रूप से रात में।
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किन कारणों से रात में बार बार पेशाब जाना पड़ता है
रात में बार-बार पेशाब आने का कारण जीवनशैली विकल्पों से लेकर चिकित्सा स्थितियों तक होते हैं। नोक्टूरिया वृद्ध वयस्कों में अधिक आम होता है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है। यदि आपकी उम्र 50 से कम है तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती है डॉक्टर से संपर्क करने की जरुरत है
- मूत्रमार्ग में संक्रमण,
- गुर्दे में संक्रमण,
- मधुमेह,
- पैरों के निचले हिस्से में सूजन,
- ब्लैडर प्रोलेप्स,
- एंग्जाइटी,
- ऑर्गन फेलियर,
- न्यूरोलॉजिकल डिसओर्डर,
कुछ दवाएं साइड इफेक्ट के रूप में नोक्टूरिया का कारण बन सकती हैं। यह विशेष रूप से मूत्रवर्धक गोलियों के सेवन का नतीजा हो सकती है जो,उच्च रक्तचाप के इलाज में दिए जाते हैं।
नोक्टूरिया का एक कारण अत्यधिक तरल पदार्थ का सेवन है। शराब और कैफीनयुक्त पेय मूत्रवर्धक होते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें पीने से आपके शरीर में अधिक मूत्र का उत्पादन होता है। अधिक मात्रा में शराब या कैफीनयुक्त पेय पदार्थों का सेवन करने से रात में जागने और पेशाब करने की समस्या हो सकती है।
मूत्र में जल की अतिरिक्त मात्रा तथा नमक होता है जिसे गुर्दा या किडनी ब्लड फ्लो से अलग करता है। गुर्दो से मूत्र को पतली नलिकाओं में भेजा जाता है जिन्हें मूत्रवाहिनी कहा जाता है। इनमें सामान्यत मूत्र एक ही दिशा में प्रवाहित होता है। मूत्रवाहिनी का संबंध मूत्राशय से होता है जो एक मजबूत थैली होती है। जब मूत्राशय भर जाता है तो, नसें मेरूरज्जु यानि स्पाइनल कॉर्ड के माध्यम से मस्तिष्क (ब्रेन) को संदेश भेजती हैं। जब कोई मूत्र त्याग यानि पेशाब करने जाता है तो मस्तिष्क एक लौटता संदेश मेरूरज्जु के माध्यम से मूत्राशय को भेजता है जिसमें मूत्राशय की दीवार यानी डेटरुसर मसल को संकुचन तथा स्फिंकटर मसल को आराम की स्थिति में आते हुए खुलने के लिये कहा जाता है। स्फिंकटर मसल मूत्रमार्ग यानी यूरेथ्रा के ऊपर की ओर एक वाल्व जैसा होता है। कहने का मतलब है कि पेशाब करने की प्रक्रिया भी मांसपेशियों के समन्वय की प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में बाधा पड़ने पर ही पेशाब करने में समस्या होती है।
आयुर्वेद के अनुसार बार-बार पेशाब आने की समस्या शरीर में कफ ओर वात के असंतुलन के कारण होता है। पेशाब में समस्या है यह बात समझने के लिए उसके रंग के बारे में सही ज्ञान होना पहले ज़रूरी होता है क्योंकि यह गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है। पेशाब का रंग हल्का पीला होना सामान्य बात है और इसका मतलब है कि आप स्वस्थ हैं। लेकिन अलग-अलग परिस्थितियों में शरीर अलग प्रतिक्रियाएं देता है जो पेशाब के रंग के आधार पर जाना जा सकता है। पेशाब के रंग में किस तरह का बदलाव नजर आता है, यह बेहद महत्वपूर्ण है।
पेशाब की मात्रा के ऊपर भी पेशाब की समस्या होती है। आदमी कितनी पेशाब करता है यह उम्र और मौसम के अनुसार बदलता है। बड़ों में 24 घण्टो में पेशाब की सामान्य मात्रा 1 से 2 लीटर होती है। गर्मियों में शरीर के तापमान के नियंत्रण के लिए पसीना आता है और इससे काफी सारा पानी और नमक त्वचा से बाहर निकल जाता है। इसके कारण गर्मी में पेशाब की मात्रा कम यानि एक लीटर हो जाती है। यूरिया शरीर से बाहर निकलने के लिए इतना पेशाब निकलना एकदम जरूरी है। सिर्फ किडनी ही यूरिया बाहर निकाल सकते है, कोई भी और अंग नहीं। सर्दियों और बरसात में पसीना काफी कम आता है, इसलिए पेशाब की मात्रा ज्यादा होती है। 24 घण्टों में करीब 2 से 3 लीटर तक पेशाब आता है। बच्चों में पेशाब की मात्रा बड़ों की तुलना में कम होती है। अगर वयस्कों में 24 घण्टों में पेशाब की मात्रा 500 मिलीलीटर से कम हो तो यह स्थिति अमूत्रता की स्थिति है। इस स्थिति को पहचानना जरूरी है।
गर्भावस्था के दौरान बार-बार पेशाब आना भी देखा जाता है, क्योंकि मूत्राशय सिकुड़ जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चा शरीर के अंदर अधिक जगह लेता है।
पेशाब करते समय दर्द होना, पेशाब में खून या अजीब रंग आना, पेशाब न रोक पाना या मूत्राशय का धीरे-धीरे कमजोर होना, पेशाब करने की इच्छा होना लेकिन पेशाब करने में दिक्कत आना, वजाइना या पेनिस से डिस्चार्ज होना, प्यास और भूख बढ़ना, बुखार, ठंड लगना, उल्टी, मतली और पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
घरेलू उपाय
- तुलसी एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करती है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को भी बाहर निकालती है। इसके एंटीमाइक्रोबियल गुण यूटीआई के इलाज में मददगार होते हैं। आपको बता दें कि यूटीआई बार-बार पेशाब आने का प्रमुख कारण होता है।
- दही में प्रोबायोटिक होते हैं जो मूत्र मार्ग में संक्रमण यानी यूटीआई की वजह से बार-बार पेशाब आने की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं। दिन में एक बार एक छोटी कटोरी खाने से आपको इस दिक्कत से निजात पाने में मदद मिलेगी।
- ग्रीन टी भी आपको इस परेशानी से राहत दिला सकती है क्योंकि इसमें माइक्रोबियल-रोधी गुण होते हैं।