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छत्तीसगढ़ मे स्थित है पाँच रहस्यमयी जगह

छत्तीसगढ़ मे स्थित है पाँच रहस्यमयी जगह :- छत्तीसगढ़ तेजी से विकास कर रहा है , इस बीच छत्तीसगढ़ मे बहोत सी रहस्यमयी जगह है  | यह आज भी खजाना, भूत-प्रेत और बहोत सी रहस्यमयी जगहों का खुलाश होते ही रहता है , एसे ही छत्तीसगढ़ मे भी कुछ अनोखी जगह के बारे मे जानते है| छत्तीसगढ़ मे स्थित है पाँच रहस्यमयी जगह छत्तीसगढ़ मे स्थित है पाँच रहस्यमयी जगह छत्तीसगढ़ मे स्थित है पाँच रहस्यमयी जगह

ठिनठिनी  पत्थर

छत्तीसगढ़ मे स्थित है पाँच रहस्यमयी जगह
ठिनठिनी  पत्थर

अम्बिकापुर शहर से 12 किलोमीटर की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं। हवाई अड्डा के पास बड़े – बड़े पत्थरों का समुह है। इन पत्थरों को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से कई  पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। इस पत्थरों के ऊपर  बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज में कोइ अंतर नहीं आता है। एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग तरह के आवाज पैदा करते हैं। इस लक्षण के कारण इस पत्थरों को वहाँ के स्थानिये लोग ठिनठिनी पत्थर का नाम दिए है |

  • सरभंजा जलप्रपात – मांड नदी पर यह जलप्रपात है, इसे इको या टाइगर पॉइंट के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर यह एक दर्शनीय स्थल है।
  • एलिफेंट पॉइंट – यह झरना जमदरहा नामक पहाड़ी नदी पर स्थित है। चारों ओर घनघोर जंगल के बीचोबीच यह झरना है,  जहां 12 महीनें पानी बहता रहता है। प्रकृति की यह अद्भुत दृश्य पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।

मैंनपाट जम्पिंग जमीन

मैंनपाट जम्पिंग जमीन

छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के अंदर मैनपाट टूरिस्ट प्लेस है | जो कि छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है। मैनपाट में एक ऐसी जमीन स्थित  है | जिसके ऊपर उछलने पर वो स्पंज की तरह प्रतीत होता है। इस जमीन पर कूदने से दबती है और फिर वापस पहले जैसे हो जाती है। इस जगह पर एक सूचना बोर्ड भी लगाी  हुआ है जिस पर लिखा हुआ है, “एक अजूबा, यहाँ धरती हिलती है। आप भी कूदकर धरती को हिलाएं और आनंद उठायें.”। इस जमीन के बारे में साइंटिस्ट्स का कहना है कि इस जमीन के नीचे पृथ्वी के आन्तरिक दवाब और पोर स्पेस में पानी भरा हुआ है जिससे यह जगह दलदली और स्पंजी लगती है। वजह जो भी हो, लेकिन यहां आने वालों लोगों के लिए ये किसी अजूबे से कम नहीं है।

  • मेहता पॉइंट – प्रकृति की गोद में बसी इस जगह पर सूर्योदय एवं सूर्यास्त का समय काफी मनोहर होता है। यह अद्भुत नजारा सैलानियों को अपनी खींच लेती है।
  • दलदली – प्रकृति की यह एक अनोखी जगह है जहां स्पंजी जमीन है, इस जगह को दलदली के नाम से जाना जाता  है। मैनपाट(Mainpat) पहुँचने वाले पर्यटकों को आप इस जगह पर उछाल-कूद करते देख सकते हैं।
  • मछली पॉइंट– प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर यह एक दर्शनीय स्थल है।

फरसाबहार के नागलोक

फरसाबहार के नागलोक

जशपुर जिला के फरसाबहार, पत्थलगांव, बगीचा और कांसाबेल का इलाका भुरभुरी मिट्टी और गर्म आबोहवा और दीगर हालात के चलते जहरीले सांपों के लिए बेहद मुफीद हैं। यहां पाए जाने वाले जहरीले सांपों की वजह से हर साल सैकड़ों लोगों की  मौत हो चुकी हैं पर इस  पूरे इलाके को नागलोक के नाम से जाना जाता है। जहरीले सांपों के डंसने की वजह से जशपुर जिले में वर्ष 2005 से लेकर मई 2017 तक कुल 425 लोगों की मौत हो चुकी है। सांप के काटने से मरने वाले लोगों में सबसे अधिक संख्या जशपुर विकासखण्ड मे  है।

कुटुमसर गुफा एवं अंधी मछली

कुटुमसर गुफा एवं अंधी मछली

यह गुफा छत्तीसगढ़ के बस्तर जिला के  कांकेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है । यह भारत देस की सबसे गहरी गुफा मानी जाती है, जो 60 – 120 फिट गहरी है तथा इसकी लम्बाई 4500 फिट है। यह समुद्र ताल से लगभग 560 मीटर की ऊँचाई पर है। कुटुमसर गुफा की तुलना विश्व की सबसे लम्बी गुफा ‘ कर्ल्सवार ऑफ़ केव ‘ (अमेरिका ) से की जाती है।कर्ल्सवार ऑफ़ केव गुफा की कुल लंबाई 640 किलोमीटर है। कुटुमसर गुफा की खोज 1950 के दशक में भूगोल के प्रोफेसर डॉ. शंकर तिवारी ने कुछ स्थानीय आदिवासियों की मदद से की थी । इस गुफा को पहले गोपनसर ( छिपी हुई गुफा) कहते थे ,जो बाद में कुटुमसर गाँव के नजदीक होने से कुटुमसर गुफा के नाम से प्रसिद्द हुई । इस गुफा में रंग बिरंगी अंधी मछलिया पाई जाती है जिन्हे प्रोफेसर के नाम पर कप्पी ओला शंकराई कहते है और गुफा से बाहर निकलने पर मछलिया मर जाती हैं। यह पर एक लंबी मुछ वाली झींगुर की प्रजाति पाया जाता है |

कांगेर घाटी की  राष्ट्रीय उद्यान :-

कांगेर घाटी की  राष्ट्रीय उद्यान

प्रकृति ने कांगेर घाटी को एसा उपहार सौंपा है, जहाँ वन देवी अपने पूरे श्रृंगार मे मंत्रमुग्ध कर देने वाली दृश्यावलियों को समेटे, भूमिगार्भित गुफाओ को सीने से लगाकर यूं खडी होती है मानो आपके आगमन का इंतजार कर रही हो। कांगेर घाटी का दर्शन एक संतोषप्रद अवर्णनीय एवं बेजोड प्राकृतिक अनुभव का उदाहरण है।कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ के जगदलपुर जिला से मात्र 27 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।यह उत्तर पश्चिम किनारे पर तीरथगढ जलप्रपात से प्रारंभ होकर पूर्व मे उडिसा की सीमा कोलाब नदी तक फैला है। कांगेर नदी इसके बीचो-बीच चलती है। इसकी औसत चौडाई 6 कि.मी. एवं लम्बाई 48 किमी है। इसका क्षेत्रफल 200 वर्ग कि.मी. है। इसकी सीमा 48 गाँवों से घिरी है।

बस्तर मे प्रकृति के इस उपहार को संरक्षण के लिये आरक्षित अनोखे वन को जुलाई 1982 मे कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया है ।इस राष्ट्रीय उद्यान मे कई प्रकार की वन प्रजातियां मिलती है। जिससे यहां के वनो की विविधिता बढती है। इनमें दक्षिणी पेनिनसुलर मिक्स्ड डेसिहुअस बन, आर्ड सागौन, वन-इनमे साल, बीजा, साजा, हल्दु, चार, तेंदु कोसम, बेंत, बांस एवं कई प्रकार के वनौषधि पौधे मिलती  है। यहां वन्य प्राणियों के साथ साथ कई रंग-बिरंगी चिडिया उडते हुये देखी  जाती है। छत्तीसगढ का राज्यकीय  पक्षी पहाडी मैना इन्ही जंगलो मे निवास करती है। इनमे पहाडी मैना के साथ भृगराज, उल्लू, वनमुर्गी, जंगल मुर्गा, क्रेस्टेड, सरपेंट इगल, श्यामा रैकेट टेल, ड्रांगो आदि सामान्यत: पाये जाते है।

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