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रहस्य से भरा रायसेन का किला

रहस्य से भरा रायसेन का किला

रहस्य से भरा रायसेन का किला – इस लेख मे हमने रायसेन किले के बारे और इसके इतिहास के बारे में बताया है, रायसेन जिला मध्य प्रदेश में स्थित है। जिलें में कई पर्यटन स्थल हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं उन्हीं में से एक है रायसेन का किला। भारत में राजाओं के ऐसे कई किले हैं, जो अपने आप में एक अनूठी कहानी समेटे हुए हैं। ये किले भारत की शान तो कहे ही जाते हैं, साथ ही साथ यहां की कुछ ऐसी रहस्यमय बातें भी हैं, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं। एक ऐसा ही किला मध्य प्रदेश के भोपाल में है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां शासन कर रहे राजा ने खुद अपनी रानी का सिर काट दिया था। इसके पीछे एक बेहद ही हैरान करने वाली एतिहासिक कहानी है।

रहस्य से भरा रायसेन का किला

रहस्य से भरा रायसेन का किला
रहस्य से भरा रायसेन का किला

इस किले का नाम रायसेन फोर्ट (रायसेन का किला) है। सन् 1200 ईस्वी में निर्मित यह किला पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह प्राचीन वास्तुकला और गुणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है, जो कई शताब्दियां बीत जाने के बाद भी शान से उसी तरह खड़ा है, जैसा पहले था। बलुआ पत्थर से बने इस किले के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों के नौ द्वार और 13 बुर्ज हैं। इस किले का शानदार इतिहास रहा है। यहां कई राजाओं ने शासन किया है, जिनमें से एक शेरशाह सूरी भी था। हालांकि यह किला जीतने में उसके पसीने छूट गए थे। तारीखे शेरशाही के मुताबिक, चार महीने की घेराबंदी के बाद भी वो यह किला नहीं जीत पाया था।

रायसेन का किला (Raisen Fort)

रायसेन किला एक बड़ी ऐतिहासिक संरचना है रायसेन किला 1500 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। जिसमें एक बड़ा जलाशय, महल और कुछ मंदिर हैं। यह 800 साल पुराना किला है, रायसेन किला नौ प्रवेश द्वारों वाली एक बड़ी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है, रक्षा, गुंबद और विभिन्न प्रारंभिक मध्यकालीन इमारतों के खंडहर हैं। सैकड़ों चमगादड़ अब इस किलो में रहते हैं।

रायसेन किले में एक मुस्लिम संत हजरत पीर फतेहुल्ला शाह बाबा की दरगाह भी है। कहा जाता है कि यह तीर्थ तीर्थयात्रियों की मनोकामना पूरी करती है। 16वीं शताब्दी तक किलो पर राजपूतों और अन्य हिंदू राजवंशों का शासन था। हालांकि इस किले को भोपाल के नवाबों ने अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन अब यह एएसआई के हाथ में है। प्रभावशाली किला एक चट्टानी चौराहे पर बनाया गया है। जिसमें एक बड़ी पत्थर की दीवार है जिसे नौ प्रवेश द्वारों से छेदा गया है। जिसमें वनस्पतियों और लंबी घास के साथ घने जंगल हैं।

कहते हैं कि शेरशाह सूरी ने इस किले को जीतने के लिए तांबे के सिक्कों को गलवाकर तोपें बनवाईं थी, जिसकी बदौलत ही उसे जीत नसीब हुई थी। हालांकि कहा जाता है कि 1543 ईस्वी में इसे जीतने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था। उस समय इस किले पर राजा पूरनमल का शासन था। उन्हें जैसे ही ये पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उनका सिर खुद ही काट दिया था।

रायसेन किला, जो एक बड़े आंगन और बीच में एक शानदार पूल से सुशोभित है जो 1200 ईस्वी पूर्व का है। शक्तिशाली किले में भगवान शिव का एक मंदिर भी है, यह चार महलों का घर है बादल महल, रोहिणी महल, इतरादान महल और हवा महल भी हैं। महल को दीवारों पर हीरे और कमल की कली की नक्काशी से सजाया गया है। हवा महल में एक बड़ा रानी ताल है जो शायद शाही महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक बड़ा तलाब था। हर साल शिवरात्रि के अवसर पर मंदिर के कपाट खुलते हैं। अन्य दिनों में मंदिर में आने वाले तीर्थयात्री अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए कपड़े का एक टुकड़ा गेट पर बांधते हैं।

रायसेन किले का रहस्य

इस किले से जुड़ी एक बेहद ही रहस्यमय कहानी है। कहते हैं कि यहां के राजा राजसेन के पास पारस पत्थर था, जो लोहे को भी सोना बना सकता था। इस रहस्यमय पत्थर के लिए कई युद्ध भी हुए थे, लेकिन जब राजा राजसेन हार गए तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया।

कहते हैं कि कई राजाओं ने इस किले को खुदवाकर पारस पत्थर को खोजने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। आज भी लोग यहां रात के समय पारस पत्थर की तलाश में तांत्रिकों को अपने साथ लेकर जाते हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। इसको लेकर ये कहानी भी प्रचलित है कि यहां पत्थर को ढूंढ़ने आने वाले कई लोग अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं, क्योंकि पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है।

हालांकि, पुरातत्व विभाग को अब तक ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिससे पता चले कि पारस पत्थर इसी किले में मौजूद है, लेकिन कही-सुनी कहानियों की वजह से लोग चोरी-छिपे पारस पत्थर की तलाश में इस किले में पहुंचते हैं।

इतिहास

रायसेन, अपने शक्तिशाली किले के साथ, हिंदू काल में अपनी स्थापना से एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र रहा है। पंद्रहवीं शताब्दी में इस किले पर मांडू के सुल्तानों का शासन था, जिसके बाद यह राजपूतों का हो गया। पूरनमल को 1543 में शेरशाह सूरी ने ले लिया था। रायसेन अकबर के शासनकाल के दौरान मालवा में उज्जैन के सूबे में एक सरकार का मुख्यालय था। भोपाल राज्य के तीसरे नवाब फ़िआज़ मोहम्मद खान ने 1760 में इसे जीत लिया और बाद में सम्राट आलमगीर द्वितीय ने रायसेन के फौजदार के रूप में मान्यता दी। मुगल काल के दौरान, खामखेड़ा गैरातगंज तहसील के क्षेत्र संख्या का प्रशासनिक केंद्र था। मुगल शासन के दौरान, इसे इसका वर्तमान नाम मिलता है। परगना की राजधानी शाहपुर थी। इसके बाद इसे सगोनी में स्थानांतरित कर दिया गया, जो बेगमगंज तहसील का हिस्सा है।

रायसेन किला में शिवरात्रि में जाना बहुत ही अच्छा रहेगा क्योंकि इस समय यह मेला लगता है और हर साल शिवरात्रि के अवसर पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और शिवरात्रि यहां धूम धाम से मनाया जाता है

अगस्त से लेकर मार्च तक यहाँ घूमने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। प्रकृति के बीच निर्मित किला बहुत ही अद्भुत है, यहाँ परिवार और दोस्तों के साथ इस स्थान अच्छा समय बिताया जा सकता है। भोपाल शहर पास होने के कारण यह स्थानीय लोगो के लिए वीकेंड प्लान में होता है। किले में प्रवेश सुबह 10:00 से प्रारम्भ हो जाता है और यह शाम 5:00 तक खुला रहता है। इस किले को सम्पूर्ण दर्शन के लिए आवशयक रूप से 2-3 घंटे लगते है।

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